तखतपुर क्षेत्र में दो जिलों के बीच में 15 से बीस गांव को जोड़ने वाला यह महत्वपूर्ण रपटा पुल, जो करीब 20 वर्ष पहले बनाया गया था, आज भी अपनी बदहाल स्थिति के कारण हादसे को दावत दे रहा है। सात वर्ष पहले आई विनाशकारी बाढ़ में यह पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन इसके बाद भी अब तक मरम्मत या पुनर्निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो सका है।
ग्रामीणों ने बताया कि पुल की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। जगह-जगह मिट्टी धंस चुकी है, कंक्रीट टूटकर बाहर आ चुका है और कई हिस्सों में लोहे की सरिया तक दिखाई देने लगी है। इसके बावजूद लोग रोजमर्रा की जरूरतों, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल और बाज़ार जाने के लिए इस जर्जर पुल पर से ही गुजरने को मजबूर हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि— “हम रोज़ जान हथेली पर लेकर इस पुल को पार करते हैं। विकल्प न होने के कारण बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी इसी टूटे पुल पर चलने को मजबूर हैं। प्रशासन से कई बार शिकायत की गई, लेकिन जांच और प्रस्ताव की प्रक्रिया में सालों से मामला अटका हुआ है।”
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि बरसात के दौरान स्थिति और खतरनाक हो जाती है। फिसलन बढ़ने से कई बार लोग गिर चुके हैं और दोपहिया वाहन फंसने की घटनाएँ भी सामने आई हैं।
स्थानीय प्रतिनिधियों ने पुल की मरम्मत या नवनिर्माण के लिए शासन और प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि— यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता।
रबेली पंचधार रपटे का पुल जर्जर — 7 साल से मरम्मत का इंतजार
रबेली पंचधार मार्ग का रपटा पुल सात वर्ष पहले आई बाढ़ में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। पुल की जर्जर स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। मरम्मत या पुनर्निर्माण का कार्य अब तक शुरू नहीं हो सका है, जिससे ग्रामीणों को रोजाना भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश के दिनों में पुल पार करना जान जोखिम में डालने जैसा हो जाता है। कई बार हादसे होते-होते बचे हैं, लेकिन अब तक प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से पुल की जल्द मरम्मत कर सुरक्षित आवागमन बहाल करने की मांग की है।
लोरमी–बिलासपुर का सबसे छोटा मार्ग बंद होने की कगार जर्जर रपटा पुल ने बढ़ाई ग्रामीणों की दूरी और परेशानी
लोरमी से बिलासपुर पहुंचने का सबसे कम दूरी वाला एकमात्र रास्ता इसी रपटा पुल से होकर गुजरता था। लेकिन पुल की जर्जर हालत के कारण अब ग्रामीणों को मजबूरन अधिक दूरी वाले वैकल्पिक मार्ग से सफर करना पड़ रहा है।
क्षतिग्रस्त पुल के कारण न केवल समय और धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि रोजमर्रा का आवागमन भी काफी कठिन हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि पुल की मरम्मत में देरी से स्कूली बच्चों, मरीजों और दैनिक कामगारों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है।
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि मार्ग की उपयोगिता को देखते हुए रपटा पुल की मरम्मत या पुनर्निर्माण का कार्य तत्काल शुरू कराया जाए।
जर्जर रपटा पुल से रोज गुजरते बच्चे माता-पिता हर दिन चिंता में
रबेली से पौड़ीकला हाईस्कूल और पंचधार से रबेली प्राथमिक शाला पढ़ने जाने वाले स्कूली बच्चे रोजाना इसी जर्जर रपटा पुल से होकर गुजरने को मजबूर हैं। पुल की खराब स्थिति के कारण बच्चों की सुरक्षा को लेकर माता–पिता लगातार चिंतित रहते हैं।
बरसात और फिसलन के समय यह खतरा और बढ़ जाता है। कई बार बच्चे गिरते–गिरते बचे हैं, लेकिन मजबूरी में उन्हें इसी मार्ग से आना-जाना पड़ रहा है।
बरसात में फिसलन बढ़ी – रपटा पुल चलने लायक नहीं बच्चों से लेकर आम ग्रामीणों को भारी परेशानी
बरसात के दिनों में रबेली–पंचधार मार्ग का रपटा पुल इतना फिसलन भरा और खराब हो जाता है कि उस पर चलना मुश्किल हो जाता है। स्कूली बच्चों सहित सभी ग्रामीणों को रोजाना आवागमन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
पुल की जर्जर हालत और फिसलन के कारण लोग जोखिम उठाने के बजाय लंबा चक्कर लगाकर अधिक दूरी तय करने को मजबूर हैं। इससे विद्यार्थियों, मरीजों, मजदूरों और किसानों का कीमती समय और पैसा दोनों बर्बाद हो रहा है।
सरपंच प्रेमचंद कश्यप,,,, ने बताया कि जर्जर रपटा पुल से बढ़ी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आपातकाल में 5–7 किमी घूमकर जाना पड़ता है अस्पताल
रपटा पुल की खराब हालत का सीधा असर ग्रामीणों की स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ रहा है। आपातकालीन स्थिति में किसी बीमार व्यक्ति को तखतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाने के लिए 5 से 7 किलोमीटर लंबा चक्कर लगाना पड़ता है।
ग्रामीणों के अनुसार, समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने के कारण कई बार गंभीर मरीजों को इलाज न मिलने से अपनी जान तक गंवानी पड़ जाती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। उन्हें प्रसव पीड़ा के दौरान समय से अस्पताल पहुंचाना बेहद कठिन हो जाता है, जिससे परिवारों में लगातार चिंता का माहौल बना रहता है।
अखिलेश मिश्रा,,, ने अपने निजी खर्चे से जर्जर रपटा पुल में मुरूम भरकर इसे अस्थायी रूप से चलने योग्य बना दिया।
पुल की खराब स्थिति के कारण बच्चे स्कूल जाने, मरीज अस्पताल पहुँचने और ग्रामीण अपने रोज़मर्रा के कामकाज के लिए जोखिम उठाने को मजबूर थे। बार-बार प्रशासन से शिकायत के बावजूद मरम्मत का कोई कार्य शुरू नहीं हुआ।
इसलिए ग्रामीणों ने अपने खर्च से पुल में मुरूम पाटकर मार्ग को सुरक्षित बनाने की पहल की, ताकि रोज़मर्रा का आवागमन आसान हो सके।
शाम के समय जर्जर पुल में आवागमन जोखिम भरा, ग्रामीणों का रूट बंद
ग्रामीण शाम के समय पुल से गुजरने में डर महसूस करते हैं, जिससे यह मार्ग पूरी तरह खाली रहता है। इस स्थिति का फायदा क्षेत्र में अवैध महुवा शराब बेचने वाले उठाते हैं। पुल के आसपास का माहौल ऐसा है जैसे शासन ने शराब की दुकान खोल दी हो—चारों तरफ शराबी, शराब की पोलीथीन और डिस्पोजल नजर आती है। ग्रामीणों का कहना है कि शराबियों को किसी का खौफ नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुल के लिए दी थी 75 लाख रुपये की स्वीकृति, आज भी जर्जर स्थिति
विद्यानंद चंद्राकर,,, ने बताया कि पूर्व में कांग्रेश शासन काल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लोरमी आए थे और रपटा पुल के निर्माण के लिए लगभग 75 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी। उस समय पुल के बगल वाले हिस्से में थोड़ी खुदाई कर सुगबुगाहट दिखाई गई और ग्रामीणों के चेहरे पर उम्मीद की किरण जागी कि अब उन्हें नए पुल की सौगात मिलेगी।
लेकिन यह खुशी कुछ ही दिनों तक सीमित रही। जैसे ही सरकार बदली, पुल का निर्माण रुका और स्थिति जस की तस बनी रही। आज भी ग्रामीण उस जर्जर और खतरे से भरे पुल से गुजरने को मजबूर हैं, जिससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी और सुरक्षा दोनों प्रभावित हो रही हैं।
ग्रामीणों ने खुद संभाला पुल का जिम्मा, नेताओं और अधिकारियों को संदेश
विजय नट,,,, का कहना है कि हर पांच वर्ष में चुनाव होते हैं, नेता और सरकार बदलते रहते हैं, लेकिन उनका यह रपटा पुल जस का तस बना हुआ है। बड़े-बड़े वादे सिर्फ जुमलों तक ही सीमित रह जाते हैं और प्रशासनिक अधिकारी अपने दफ्तरों में बैठ कर क्षेत्र का दौरा कर लेते हैं।
खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है। पिछले 5–7 वर्षों से जर्जर पुल की स्थिति अधिकारियों तक नहीं पहुंची। इसके चलते ग्रामीणों ने अपने निजी खर्चे से पुल में मुरूम डालकर इसे चलने योग्य बनाया।
इस कदम के जरिए ग्रामीण यह स्पष्ट संदेश दे रहे हैं
अगर किसान धरती का सीना चीरकर अन्न पैदा कर सकता है, तो वह अपने लिए कुछ भी कर सकता है।
वर्ज़न,,,, जर्जर रपटा पुल के मामले में जल संसाधन विभाग के एसडीओ मनीष राठौर से बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि— “मुझे तखतपुर आए अभी कुछ ही दिन हुए हैं। इस विषय में फिलहाल विस्तृत जानकारी नहीं है। मैं कल इस मामले की जानकारी लेकर ही किसी भी प्रकार का स्पष्ट बयान दे पाऊंगा।”
वर्ज़न,,,, जर्जर रपटा पुल और ग्रामीणों को हो रही समस्याओं के बारे में जब एसडीएम नितिन तिवारी से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा— “आप इस मामले से जुड़ी पूरी जानकारी मुझे भेज दीजिए। मैं संबंधित विभाग को प्रपोज़ल तैयार कर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दूंगा।”
बता दें कि इस पुल का निर्माण उस समय किया गया था जब यह क्षेत्र बिलासपुर जिले में आता था। वर्ष 2012 के बाद मुंगेली जिला बनने के बाद से यह मार्ग उसी स्थिति में बना हुआ है।

